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26)नानी के घर की यादें ( यादों के झरोके से )



शीर्षक = नानी के घर की यादें



अब हम अपने संस्मरण में एक ऐसे घर से जुडी यादों को साँझा करने जा रहे है, जहाँ से आप सब की भी यादें अवश्य जुडी होंगी, तो देर किस बात की आइये चलते है हम आपको अपनी नानी के घर की सेर कराने 


नानी का घर , एक ऐसा घर जहाँ हमें हमारे रिश्तेदार हमारी माँ के नाम से जानते है  वरना तो दुनिया बाप का नाम ही पूछती है , जैसे माँ का तो कोई लेना देना ही नही हो बच्चें की परवरिश और उसे पैदा करने में, खेर ये खोखला समाज कहा समझ पायेगा इन सब बातों को इसे तो बस मौका चाहिए  बाते बनाने के लिए 


हम मुद्दे पर आते है , हम बताते चले हम इतने ख़ुशक़िस्मत नही थे  की जो अपनी आँखों से अपने नाना नानी को देख सकते थे , दरअसल हमारे जन्म से पहले ही वो खुदा के पास चली गयी थी जिस वजह से हमारा वो नानी का घर अब मामा का घर बन गया था


और आप सब ही तो जानते है खास कर शादी शुदा महिलाएं फिर चाहे वो किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाली हो, बेटी का मायका जब तक ही मायका होता है जब तक उसके माँ बाप ज़िंदा होते है उसके बाद तो वो भाइयो का घर बन जाता है  और फिर वहाँ भाभियाँ आ जाती है, जिसके बाद उस मायके से दूरी सी होने लगती है 


हम भी जब छोटे थे  तब हमेशा अपनी अम्मी से मामा के घर जाने की ज़िद्द करते थे , हमारे मामू भी बेहद अच्छे थे, हमें हर तीज त्यौहार पर बुलाया करते थे हमारा भी मन वहाँ लगता था क्यूंकि उनके बच्चें हमारे साथ के थे और जो नही थे वो भी बच्चें बन जाया करते थे, बहुत मजा आता था 

लेकिन हमारी अम्मी बस एक दो दिन से ज्यादा नही रूकती थी  जिसके चलते हमें बहुत गुस्सा आता था, नही पता अम्मी क्यू वहाँ से जल्दी चली आती थी?

हम अपने मामा के बच्चों के साथ  कभी कही तो कभी कही घूम कर आते थे , उन्हें भी हम सब का साथ अच्छा लगता और हमारे जाने की खबर उन्हें भी उदास कर देती थी

हम और दिन वहाँ रुकना चाहते थे पर हमारी अम्मी वहाँ से ले आती थी, बचपन में तो पता नही चलता था  छोटे थे  लेकिन जब बड़े हुए तब सब कुछ समझ आने लगा था की क्यू हमारी अम्मी सिर्फ एक दो दिन ही वहाँ रूकती और उसके बाद अपने घर आ जाती थी , आप सब समझ ही गए होंगे बताना जरूरी तो नही

फिर जब हम बड़े हो गए तब हमने भी जाना कम कर दिया, और अब तो सिर्फ वो बचपन और उस नानी के घर की यादें ही रह गयी है कितना अच्छा होता बड़े ही ना होते और ना लोगो के चेहरे पढ़ने का हुनर सीखते  खेर छोड़ये ये तो प्रकर्ति का नियम है  जिसे बदला नही जा सकता है 


ऐसे ही किसी अन्य याद को आपके साथ साँझा करने जल्द आऊंगा तब तक के लिए अलविदा


यादों के झरोखे से 

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2 Comments

Abhilasha deshpande

15-Dec-2022 10:05 PM

Osm

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Sachin dev

15-Dec-2022 06:15 PM

Amazing

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